महान गणितज्ञ व खगोल विज्ञानी Aryabhatta– के बारे में आर्यभट्ट के जीवनी के माध्यम से हम उनके महान सिद्धांत को
भारतीय विरासत के उपलब्धि के तौर आईये समझने का प्रयास करते हैं
Aryabhatta biography in Hindi- आर्यभट जीवन परिचय (जीवनी )
पृथ्वी गोल है अपने अक्ष या धुरी पर घूमता है फलस्वरूप रात व दिन होता है
इस बात का खुलासा पश्चिमी खगोलवेत्ता कोपरनिकस ने (1473-1543 ई.) 16वीं शताब्दी में किया था,
किंतु इस वैज्ञानिक तथ्य की खोज आर्यभट्ट (प्रथम) ने इससे वर्षों पहले कर डाली ली थी।
आर्यभट्ट संभवत: विश्व के सर्वप्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने भू-भ्रमण सिद्धांत (Concept of Earth Rotation) का प्रतिपादन किया।
आर्यभट्ट Aryabhatta की यह खोज प्राचीन परंपराओं व पुराणों के विरुद्ध थी अत: वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, लल्ल ने भी इसकी कटु आलोचना की। किंतु बाद में आर्यभट्ट सही साबित हुए।
जन्म एवं शिक्षा -life history of Aryabhatt
प्राचीन भारत में इस क्रांतिकारी सिद्धांत की स्थापना करने वाले आर्यभट्ट एक महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री तथा ज्योतिष थे।
उनके एक ग्रंथ ‘आर्यभट्टीय’ में उन्होंने अपना जन्म स्थान कुसुमपुर (आधुनिक पटना) तथा जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है।
इस आधार पर उनका जन्म 13 अप्रैल 476 ई. को हुआ माना जाता है। यह समय विज्ञान, साहित्य तथा संस्कृति के विकास का स्वर्णकाल कहा जाता है .
उनके ग्रंथों के अवलोकन के आधार पर कहा जाता है कि वे जाति के ब्राह्मण थे।
विद्वान एस. पिल्लई के अनुसार वह विवाहित थे और उनका देवराजन नामक प्रकांड ज्योतिषशास्त्री पुत्र भी था।
किंतु इस विषय में ठोस जानकारी का अभाव है।
आर्यभट के खोज व अविष्कार
डी. ई. स्मिथ जैसे गणितज्ञ के अनुसार आर्यभट्ट की मृत्यु 74 वर्ष की आयु में 530 ई. में हुई थी।
माना जाता है कि उन्होंने पटना से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की तथा नालंदा विश्वविद्यालय से गणित, ज्योतिष व खगोल की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत भाषा, वेदों, उपनिषदों, दार्शनिक ग्रंथों के अलावा पूर्ववर्ती विद्वानों के ग्रंथों का भी अध्ययन किया।
उनका झुकाव बचपन से ही आविष्कारों व खोजों के प्रति रहा था।
मात्र 23 वर्ष की अल्प आयु में ही उन्होंने ‘आर्यभट्टीय’ नाम मौलिक ग्रंथ की रचना कर डाली थी।
यह एक महान वैज्ञानिक उपलब्धि थी। उन्होंने वैज्ञानिक आधार पर अंधविश्वास से परे एक नई वैज्ञानिक परंपरा का सूत्रपात किया।
अत: उनके आलोचकों को भी उनके आगे झुकना पड़ा। अल्प आयु में ही उन्होंने ग्रह-वेध का नाम भी अर्जित कर लिया था।
कहा जाता है कि वह शिक्षण कार्य करते थे। एक श्लोक में उन्हें ‘कलु’ की उपाधि से विभूषित किया गया था
जिसका अर्थ किसी विश्वविद्यालय का कुलपति होता है।
कहा जाता है कि उनकी प्रतिभा के कारण तत्कालीन गुप्तवंश शासक बुद्धगुप्त ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति बना दिया था।
उनके शिष्यों में लाटदेव, प्रभाकर, लल्लाचार्य आदि को शामिल किया जाता है।
कई सम्मानों से विभूषित आर्यभट्ट अपने समय के विख्यात भौतिक वैज्ञानिक व आविष्कर्ता रहे हैं, जिन्हें परवर्ती विद्वानों ने कई सम्मानों से विभूषित किया।
भास्कर ‘प्रथम’ ने उन्हें श्रीमद्भट, प्रभो, प्रभु कहा, तो गोविंद स्वामी व परमेश्वर ने महाभास्करीय में उन्हें भगवानचिट’ कहा।
Aryabhat mathematical concept
प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक इतिहास में सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने गणित को ज्योतिष से पृथक कर ग्रंथों में स्वतंत्र विषय के रूप में स्थान दिया।
उन्होंने तीन ज्योतिष ग्रंथों की रचना की-‘आर्यभट्टीय’, ‘आर्यभट्ट-सिद्धांत’ तथा ‘सूर्य प्रकाश सिद्धांत’।
आर्यभट्टीय वस्तुतः भारत का सर्वाधिक प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ है, जिसमें गणितीय सूत्रों को समाहित किया गया है।
इसकी रचना पद्धति आर्यभट्ट की कुशाग्र बुद्धि की परिचायक है।
यह चार अध्यायों-दशगीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद एवं गोलपाद में विभक्त है, जिसमें कुल 121 श्लोक हैं।
शुन्य के अविष्कारक के रूप में भी आर्यभट्ट का नाम लिया जाता है .
खगोलीय और विज्ञान के क्षेत्र में योगदान contribution of aryabhatta-Science and Astrology
आर्यभट्ट के ग्रंथ आर्यभट्टीय ने एक नई विचारधारा का सूत्रपात किया।
आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम यह घोषणा की कि पृथ्वी गोल है तथा अपनी धुरी पर घूमती है, जिससे दिन-रात बनते हैं।
साथ ही उन्होंने कहा कि चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है बल्कि वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है।
उनके अनुसार पृथ्वी व अन्य समस्त ग्रह भी सूर्य के सामने होने से आधे प्रकाशित होते हैं।
आर्यभट्ट ने सूर्यग्रहण व चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक कारण बताए कि ये ग्रहण राहु द्वारा सूर्य अथवा चांद को हड़पने से नहीं होतें।
बल्कि पृथ्वी व चंद्रमा की पड़ने वाली छायाओं के कारण होते हैं।
गणना के सिद्धांत
आर्यभट्टीय का चौथा अध्याय 50 श्लोक युक्त है, जिसमें आकाशीय गोल पर सूर्य, चंद्रमा व अन्य गति गणना से संबंधित विषयों को शामिल किया गया है।
उन्होंने सूर्य के उदय व अस्त होने के कारण, सुमेरुपर्वत (उत्तरी ध्रुव) का आकार, दक्षिण ध्रुव का आकार, लंका व उज्जैन का अंतर, खगोल गणित की परिभाषाओं, चंद्रमा, सूर्य व अन्य ग्रहों के मूलांक निकालने की विधि, खगोल के आधे भाग में कम दिखाई पड़ने का कारण आदि स्पष्ट करके समझाए।
प्रथम अध्याय के 13 श्लोकों में स्वरों व व्यंजनों की मदद से बड़ी-बड़ी संख्याएं लिखने की विधि का वर्णन है तो अकाशीय पिंडों के भ्रमणों की संख्या, उनके मंदवृत व शीघ्रवृत की परिधियां, कक्षाओं के झुकाव आदि की गणना पद्धति दी गई है।
तीसरे अध्याय में आर्यभट्ट ने काल गणना संबंधी 25 श्लोक दिए हैं। इनमें काल व कोण की इकाइयां, एक युग में ग्रहों की युति एव व्यतीपात, सौर व चंद्र मास, सावन नक्षत्र दिन, अधिमास, क्षयतिथि, रवि वर्ष, द्विव्य वर्ष, युग वर्गीकरण, ग्रह गति व परिभ्रमण में लगने वाले समय, ग्रह व पृथ्वी के केंद्र के बीच की दूरी की गणना तथा उनकी गति आदि का वर्णन है।
गणित जगत में योगदान – discoveries of aryabhatta in mathematics
आर्यभट्ट ज्योतिष, खगोलवेत्ता होने के साथ-साथ कुशल गणितज्ञ भी थे।
उन्होंने आर्यभट्टीय के दशगीतिकापाद में एक नई विधि से ज्योतिषपयोगी संख्याओं को पद्यबद्ध किया।
बड़ी से बड़ी संख्याओं को दर्शाने के लिए स्वर व व्यंजनों के अक्षर संकेतों को प्रयोग किया।
उन्होंने ही बीजगणित की नींव रखी। यह आर्यभट्ट की विलक्षण बुद्धि का आविष्कार था।
आर्यभट्ट ने त्रैराशिक नियम, भिन्नों के परिकर्म, विलोम तिथि, ब्याज नियिम, पद संख्या, श्रेणी व्यवहार,
चितिघन, समीकरणों, एक घातीय समीकरण, द्विघातीय समीकरण, युगपद द्विघातीय समीकरण,
घातीय (कुट्टक) समीकरण, वर्ग व घन, कर्ण के वर्ग संबंधी प्रमेय, विभिन्न समतल आकृतियों की रचना,
विभिन्न त्रिभुजों, विभिन्न चावर्ण, त्रिकोणामिति आदि को भी विश्व के सामने रखा।
प्रथम ज्या (टेबल ऑफ साइंस) -पाई का मान
आर्यभट्ट ने प्रथम ज्या (टेबल ऑफ साइंस) का मान 225 कला माना जो सूर्य सिद्धांत की भी इकाई है।
साथ ही उन्होंने त्रिज्या का मान 3438 बताया, जिसे ब्रह्मगुप्त के अलावा सभी गणितज्ञ खगोलवेत्ताओं ने अपनाया।
उन्होंने पाई का मान 3.1416 बताया और उसे सन्निकट मान कहा।
आर्यभट्ट का ज्योतिष में योगदान Arya bhat Achievement’s of astrology
आर्यभट्टीय ज्योतिषशास्त्र का भी एक प्रमुख तंत्र ग्रंथ है जिसमें आर्यभट्ट द्वारा प्रतिपादित अनेक श्रमपूर्ण गवेषणाएं मिलती हैं।
उसी में काल गणना का वैज्ञानिक विश्लेषण स्पष्ट होता है। उन्होंने काल को नित्य, अनादि व अनंत बताया तथा कई भागों में विभाजित किया।
आर्यभट्ट ने सौर दिन, चंद्र दिन व नक्षत्र दिन को स्पष्ट किया। उन्होंने वर्षों तक आकाशीय पिंडों, ग्रहों व असंख्य तारों का निरीक्षण किया तथा तदानुकूल सिद्धांतों की स्थापना की। उन्होंने योजन की माप को 9/1/11 मील के बराबर बताया।
उन्होंने ग्रह गति की नीमोच्य वृत (Epicycle) रचना की एक नई परंपरा की स्थापना की इसलिए कुछ विद्वानों ने उन्हें भारतीय नीमोच्य संबंधी ज्योतिष (Epicyclic Astronomy) का जनक कहा जाता है।
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत
आर्यभट्ट(Aryabhatta) ने पृथ्वी को चार महाभूतों-मिट्टी, जल, अग्नि एवं वायु से बना बनाया।
उन्होंने पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के विषय में भी स्पष्टीकरण दिया। इससे स्पष्ट होता है कि वह न्यूटन से काफी पहले से ही गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से परिचित थे।
इसके अतिरिक्त आर्यभट्ट ने लघुग्रह मंद स्पष्ट सिद्धांत (हेलियो सेन्ट्रिक) को कोपरनिक्स से 1000 वर्ष पूर्व ही स्थापित कर दिया था।
आर्यभट्ट ने पृथ्वी की सतह से वायुमंडल की ऊंचाई 109 मील सिद्ध की जो कि आधुनिक मान के निकटवर्ती है।
उन्होंने पृथ्वी के केंद्र से पृथ्वी की छाया की लंबाई, स्थित्यर्ध, काल, विमदर्धि काल, इष्टकाल में ग्रास, आक्षवलन,
आयनवलन आदि से संबंधित वैज्ञानिक सूत्रों व सिद्धांतों की विवेचना की।
वह पहले खगोलज्ञ थे जिन्होंने गोलीय, ज्योतिष, संबंधी सूत्रों की स्थापना की व नई परंपराओं की शुरुआत की।
वेध शोधन एवं यंत्र
भारतीय ज्योतिषियों के समान Aryabhatta ने भी स्वयं वेध करके अपने ग्रंथों में विक्षेष के लिए भिन्न-भिन्न मान दिए।
सूर्य सिद्धांत में भी (अध्याय तेरह) में विभिन्न यंत्रों का वर्णन किया गया है। वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त आदि वैज्ञानिकों ने भी इस परंपरा का अनुसरण किया।
आर्यभट्टीय ‘शंकु एवं काष्ठ यंत्र’ की ही चर्चा की गई है तथा उसे बनाने की विधि भी दी गई है।
जबकि ‘आर्यभट्ट सिद्धांत’ में नौ प्रकार के यंत्रों की विशद व्याख्या की गई है, इनमें छाया यंत्र, धनुयंत्र, यष्टि यंत्र,
चक्र-यंत्र, छत्र-यंत्र, तोय-यंत्र, घटिका यंत्र, तथा शंकु-यंत्र का उल्लेख है।
Source aryabhatta wikipedia एवं अन्य पाठ्य सामाग्री के द्वारा प्राप्त स्रोत