भारत का इतिहास-शक पार्थियन एवं कुषाण (Indian History)

प्राचीन भारत का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। यहां हम  शक पार्थियन एवं कुषाण वंश के सामान्य जानकारी को साझा कर रहे हैं। (Ancient Indian History )

शक कौन थे ?

बैक्ट्रियन कौन थे ?

शक वंश के संस्थापक कौन थे ?

कुषाण कौन थे ?

पार्थियन क्या है ?

आइये इन सभी के उत्तर संक्षिप्त में जानते हैं 

शक पार्थियन एवं कुषाण  (प्राचीन भारत का इतिहास )

भारत का इतिहास शक पार्थियन एवं कुषाण

मौर्य साम्राज्य के पतन के कुछ समय बाद उत्तर पश्चिमी भारत में यूनानी एवं मध्य एशियाई सीथियन शासन की स्थापना हुई.

बैक्ट्रियन वंश

(हिन्द-यूनानी, इंडो-बैक्ट्रियाई) . ईसा पूर्व दूसरी सदी के प्रारंभ में अफगानिस्तान तथा पश्चिमोत्तर भारत में बैक्ट्रिया में भारत-यूनानी राज्य स्थापित था.

सबसे प्रसिद्ध भारतीय यूनानी शासक मिनान्डर (165-145 ई.पू.) हुआ.

भारतीय स्रोतों में इसे ‘मिलिन्द’ कहा गया है. इसकी राजधानी ‘साकल’ (वर्तमान स्यालकोट) थी.

उसे नार्गाजुन अथवा नागसेन ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया.

मिनान्डर और नागसेन के प्रश्नोत्तर पाली भाषा की मिलिन्दपन्हों’ (मिलिन्द के प्रश्न) में संकलित है.

बैक्ट्रियायी शासक भारत में बड़ी संख्या में सोने के सिक्के चलाने के लिए प्रसिद्ध हैं.

तक्षशिला के यूनानी शासक के दूत ने मगध दरबार में हेलियोडोरस को दूत के रूप में भेजा था, जिसने भागवत धर्म स्वीकार कर लिया था और बेसनगर में गरूड़-स्तम्भ का निर्माण कराया था.

हेलियोडोरस का बेसनगर अभिलेख वासुदेव से संदर्भित है.

शक वंश

मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे. उज्जैन का रूद्रदमन सर्वाधिक विख्यात शक शासक हुआ.

उसके बारे में जानकारी ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से मिलती है.

यह अभिलेख संस्कृत में लिखे सर्वप्रथम अभिलेखों में से है.

रूद्रदमन ने स्वयं के व्यय से मौर्यों के समय बनाए गए सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार कराया था.

पर्थियन साम्राज्य (वंश )

शकों के बाद पार्थियन आये. इनकी राजधानी तक्षशिला थी. सबसे प्रसिद्ध पार्थियायी शासक ‘गोंदोफर्नीज’ था.

उसी के शासन काल में ईसाई धर्म का प्रचार करने सेन्ट थामस लगभग 50 ईसवी में भारत में आया था. जिसकी मलाबार में हत्या कर दी गई.

कुषाण वंश

कुषाणों का प्रथम शासक कुजुल कडफिस हुआ. कनिष्क- कुषाणों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक कनिष्क (78-123 ई.) था.

उसके साम्राज्य में मध्य एशिया के यारकंद, काशगर तथा खोतान भी शामिल थे.

मध्य एशिया के इन क्षेत्रों को जीतने वाला कनिष्क भारतीय इतिहास का पहला शासक था.

कनिष्क के साम्राज्य की दो राजधानियाँ थीं प्रथम पुरूषपुर (पेशावर) एवं द्वितीय मथुरा.

कनिष्क ने 78 ई. में सिंहासनारोहण के साथ ही शक संवत् भी प्रारंभ हुआ.

जो भारत सरकार का राजकीय कैलेण्डर है.

कनिष्क ने महायान बौद्ध धर्म ग्रहण किया और कश्मीर में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया. जिसके अध्यक्ष वसुमित्र थे.

अश्वघोष एवं वसुमित्र दोनों कनिष्क के समकालीन थे.

बुद्ध की खड़ी प्रतिमा कुषाणकाल में बनाई गई. कनिष्क की प्रथम राजधानी पुरूषपुर द्वितीय मथुरा थी.

कनिष्क के समय बौद्ध धर्म हीनयान एवं महायान में विभाजित हुआ.

रूढ़िवादी हीनयान का केन्द्र ‘कौशाम्बी’ था, इसका प्रसार लंका, बर्मा, द.पू.एशिया में हुआ.

जबकि महायान प्रगतिशील सम्प्रदाय है, इसमें पाली के स्थान पर संस्कृत का प्रयोग हुआ,

महायान मत में बुद्ध को ईश्वर मानकर उसकी मूर्तिपूजा प्रारंभ की गई.


 कुषाण काल की कला,व्यापार, प्रशासन, धर्म

कुषाणों का सिल्क मार्ग पर अधिकार था. सिल्क मार्ग (रेशम मार्ग) चीन से आरंभ होकर ईरान व पश्चिमी एशिया के रोमन साम्राज्य तक जाता था.

कालान्तर में यूनानी, शक, पार्थियन एवं कुषाण भारतीय समाज में विलीन हो गए.

विदेशी शासक वर्ग के लोगों को हिन्दू समाज में द्वितीय श्रेणी के क्षत्रियों के रूप में शामिल किया गया.

इस काल में भारतीय प्रशासन में कई विदेशी तत्व सम्मिलित हुए जैसे- क्षत्रपी व्यवस्था, सैनिक गवर्नरशिप, राजत्व के दैवीय उत्पत्ति सिद्धांत की मान्यता, भव्य उपाधियाँ आदि.

नार्गाजुनीकोण्डा एवं अमरावती- इक्ष्वाकुओं के समय बौद्ध संस्कृति के महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए.

यूनानी, कुषाण एवं शकों में से कई ने हिन्दू धर्म के स्थान पर बौद्ध धर्म को अपनाया, क्योंकि जाति प्रथा से अभिभूत हिन्दू धर्म की ओर वे आकर्षित नहीं हो सके.

कदंब वंश के संस्थापक ‘मयूरशर्मन’ ने 18 बार अश्वमेध यज्ञ किया.

इस काल में यूनानी, रोमन तथा भारतीय तत्वों के मिश्रण से- गांधार कला शैली का जन्म हुआ.

गांधार कला की प्रमुख विशेषता है

ग्रीक देवता अपोलो से बुद्ध की मूर्तियों का साम्य, शारीरिक सौन्दर्य, पारदर्शी वस्त्र, लहरदार बाल तथा निर्माण में सफेद पत्थर व चूने का प्रयोग.

मथुरा कला शैली के विकास का काल भी यही था. इस कला शैली की प्रमुख विशेषताएं निर्माण में लाल पत्थर का प्रयोग, चेहरे के चारों ओर आभामण्डल, चेहरे पर आध्यात्मिक शांति के भाव तथा घुघराले बाल आदि थे.

मथुरा कला शैली का प्रमुख उदाहरण कनिष्क की शीर्ष विहीन मूर्ति है.

साहित्य एवं विज्ञान

बौद्ध विद्वान अश्वघोष ने बुद्धचरित की रचना की.

नागार्जुन ने माध्यमिक कारिका की रचना की.

शून्यता के सिद्धान्त का सर्वप्रथम प्रतिपादन करने वाले बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन थे.

नागार्जुन द्वारा प्रतिपादित ‘शून्यवाद’ आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत से साम्यता रखता है.

यूनानी शब्द ‘होरोस्कोप’ से होराशास्त्र बना संस्कृत में इसका प्रयोग ज्योतिष के लिए हुआ.

भारतीयों ने कैलेण्डर, सात दिनों का विभाजन एवं ग्रहों का नाम यूनानियों से ग्रहण किया.

. इस काल के सिक्कों पर रोमन शैली के सिक्कों का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है.

इस काल में रचा गया चरक का ‘चरक-संहिता’ आयुर्वेद पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है.

सुश्रुत भी इस काल के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री थे. महाभाष्य के लेखक व्याकरणाचार्य पातंजलि भी इसी काल में हुए.

भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र‘ रचना की.

भास का स्वप्नवासवदत्ता इसी काल का है.

सातवाहन राजा ‘हाल’ ने प्राकृत में ‘गाथा सत्सई’ (गाथा-सप्तशती) लिखा.

वात्स्यायन का कामसूत्र एवं मनुस्मृति भी इसी समय लिखा गया.

अन्य तथ्य प्लिनी की नैचुरल हिस्टोरिका, अज्ञात लेखक की पेरिपल्स आफ द एरिथ्रयन सी व टोलेमी की ज्योग्राफिका नामक पुस्तकों में इस समय की भूगोल-वाणिज्य की प्रचुर जानकारी मिलती है.

मानसून की जानकारी हिप्पालस ने दी. मानसून अरबी भाषा का शब्द है.

दक्षिण भारत के पांड्य राजा ने रोम राज्य में एक दूत 26 ई.पू. में भेजा था.

प्राचीन समय में यूनान, रोम में काली मिर्च की काफी मांग थी, वहा यह मंहगे दामों पर बिकती थी,

संस्कृत ग्रंथों में कालीमिर्च को यवनप्रिय कहा गया है.

हाथी गुम्फा लेख राजा खारवेल से संबंधित है.