Penicillin in Hindi पेनिसिलिन की खोज

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Penicillin in Hindi पेनिसिलिन की खोज

पेनिसिलीन-Penicillin के खोजकर्ता एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग का जन्म स्कॉटलैण्ड में सन् 1881में हुआ था। उन्होंने लन्दन के सेंट मेरी अस्पताल के चिकित्सा विद्यालय में प्रवेश लिया था। उन्हें प्रारम्भ से ही ज्ञान के प्रति तीव्र भूख थी और वैज्ञानिक बातों में बड़ी अभिरुचि थी। अपने जीवाणु विज्ञान के प्राध्यापक सर आल्मरोथ राईट के विषय ज्ञान और अधिकारपूर्वक पढ़ाने की शैली से प्रभावित और प्रेरित फ्लेमिंग ने निश्चय किया कि वह भी इसी विषय का गहन अध्ययन करेंगे।

सन् 1914 के प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वे घायल सिपाहियों के इलाज के लिये गये। उन्होंने देखा कि घाव के पक जाने से हजारों की संख्या में सिपाही मर रहे थे। जो एन्टीसेप्टिक काम में लाये जाते थे वे और अधिक हानिकारक थे । इन्फेक्शन छोटे-छोटे जीवाणु के कारण बढ़ते थे पर उनके रोकथाम का कोई कारगर उपाय नहीं था।

What is Penicillin

फ्लेमिंग ने इस दिशा में अनेक प्रयोग किए। उन्होंने जीवाणुओं के कल्चर तैयार कर माइक्रोस्कोप में परखा। सितम्बर, 1928 में पाया कि फफूंद उस कल्चर पर गिर कर उसे नष्ट कर रही थी। उन्होंने देखा कि फफूंद से रसायन को अलग नहीं कर सकते । इस कार्य को डॉक्टर हावर्ड फ्लोरे एवं डॉ. ई. बी. चेन ने आगे बढ़ाया और पाया कि पेनिसिलीन की फफूंद शक्कर के घोल में सबसे अच्छी उत्पन्न होती है। वे फफूंद से रसायन अलग करने में सफल हो गये और इसके पश्चात् उन्होंने इसका पाउडर बनाया।

सर्वप्रथम इसका परीक्षण चूहों पर किया गया। चूहों पर सफल परीक्षण के पश्चात् मानव पर इसका परीक्षण किया गया। यह परीक्षण भी सफल रहा। द्वितीय विश्व युद्ध में हजारों लोगों के प्राणों की रक्षा इसी पेनिसिलीन से की जा सकी।

सन् 1944 में फ्लेमिंग को इस महान् खोज के कारण सम्राट जार्ज षष्टम ने इन्हें नाईट की पदवी से नवाजा और एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग, सर एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग बन गये। अगले ही वर्ष सन् 1946 में नोबल पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया ।

चिकित्सा के क्षेत्र में पेनिसिलीन एक महान् वरदान है आज यह करोड़ों लोगों के जीवन की रक्षा करता है। पीड़ित मानवता को फ्लेमिंग की यह आश्चर्यजनक देन है।

सन् 1949 में इटली में वेरोना (नगर) में चिकित्सकों का एक सम्मेलन हुआ। सम्मेलन के अन्त में श्रोताओं में से अनेक लोग, मुख्य अतिथियों में से एक के चारों ओर उससे बातें करने के एकत्र हो गये। अचानक तीन बच्चों सहित एक व्यक्ति ने भीड़ में से अपना रास्ता बनाया।
वह अतिथि तक गया और आँखों में आँसू भरकर बोला-“श्रीमान् ये बच्चे अपने जीवन के लिये लिये आपके एहसानमन्द हैं।” जिससे उसने कहा था वह व्यक्ति मानव-कष्टों को बहुत हद तक कम करने वाली अद्भुत दवा पेनिसिलीन-Penicillin का आविष्कारक था।

अलेक्जेण्डर फ्लेमिंग का जन्म स्कॉटलैण्ड में 1881 में हुआ था। उसने स्कूलमअच्छा काम किया और लन्दन में अपना अध्ययन जारी रखने के लिये उसे छात्रवृत्ति दी गई। वहाँ उसने सेण्ट मेरी अस्पताल” के मेडिकल स्कूल में प्रवेश लिया। वैज्ञानिक बातों के लिये उसमें इतनी जिज्ञासा
थी तथा उसमें ज्ञान प्राप्त करने की इतनी भूख थी कि उसने अत्यन्त शीघ्र शिक्षा ग्रहण की तथा अपनी सभी परीक्षाओं में सम्मानपूर्वक उत्तीर्ण होने में सफल हो सका।

जब फ्लमिंग सेण्ट मेरी अस्पताल” में पढ़ रहा था, एक जीवाणु विशेषज्ञ सर आल्मरोथ राइट ने एक प्रोफेसर के रूप में अस्पताल में कार्यभार ग्रहण किया। प्रोफेसर राइट जीवाणु विज्ञान पर जीवाणुओं के अध्ययन हेत अपना प्रयोग कर रहे थे और वे उस विषय को अत्यन्त प्रवीणता तथा पूर्णता के साथ पढ़ाते हैं।

सूक्ष्म जीवाणु कैसे बनते थे ?


फ्लेमिंग उस विषय की ओर इतना अधिक आकृष्ट हुआ कि उसने उसे अपने अध्ययन का विशेष क्षेत्र चुनने का निर्णय ले लिया।
समय आने पर फ्लेमिंग एक अतिप्रसिद्ध जीवाणु विज्ञानवेत्ता बन गया।

सन् 1914 में कर प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया तब वह प्रो. राइट के साथ घायल सैनिकों की सेवा करने के लिये बोलोन चला गया। वहाँ उसने देखा कि हजारों सैनिक घाव पक जाने के कारण मर रहे थे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि (उस समय) सड़न रोकने वाली दवाओं का प्रयोग किया जाता था किन्तु वे ऐसी थी जो शरीर को हानि पहुँचाती थीं।

लिस्टर ने खोज लिया था कि सूक्ष्म कीटाणुओं के घाव में प्रवेश करने के कारण वे पक जाते थे। किन्तु इस खोज से परे घावों की सड़न की रोकथाम के उपायों की कोई जानकारी न थी। सूक्ष्म जीवाणु कैसे बनते थे ? उन्हें किस प्रकार नष्ट किया जा सकता था ? फ्लेमिंग इन्हीं प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ना चाहता था।
युद् के उपरान्त फ्लेमिंग सेण्ट मेरी अस्पताल लौट आया और समस्या का हल निकालने का काम शुरू किया। उसने अपनी प्रयोगशाला में अनेक प्रकार के जीवाणुओं का स्वरूप विकसित किया तथा सूक्ष्मदर्शक यंत्र द्वारा उनका अध्ययन किया।

पेनिसिलिन की खोज 


सितम्बर, 1928 को एक दिन सबेरे फ्लेमिंग जीवाणुओं की खेती की जाँच कर रहा था जिन्हें एक रात पहले ही उसने तैयार किया था। अचानक उनमें से एक पर उसने एक चमकदार हरा घेरा देखा। इस पर वह क्रोधित हो उठा और सोचा कि प्रयोग (असफल) बिगड़ गया था। किन्तु उसने
उस बरबाद कल्चर (जीवाणुओं की खेती) को फेंक देने के बदले, वह कैसे खराब हुआ यह जानने के लिये अपने सूक्ष्मदर्शक यंत्र के नीचे रखा।

उसने देखा कि उस पर एक फफूंद लग गई थी। वह कल्चर (जीवाणुओं की खेती) को खा रही थी और नष्ट कर रही थी। फफूंदें छोटे-छोटे पौधो पर
उत्पन्न होती हैं। यदि उन्हें कुछ समय के लिये गर्म तथा आर्द्र हवा में छोड़ दिया जाये तो वे कभी-कभी भोजन, चमड़ा एवं पुराने कपड़ों पर देखी जा सकती हैं। कल्चर (जीवाणुओं की खेती फफूंद द्वारा आंशिक रूप से नष्ट कर दी गई थी। वह एक शक्तिशाली जीवाणुनाशक सिद्ध हुई थी।Penicillin की खोज 


फ्लेमिंग इस आविष्कार से इतना उत्तेजित हो गया कि उसने फफूंदों पर अनेक प्रयोग किये। उसने पाया कि वह रोटी पर लगी फफूंद थी। उसने उसका नाम पेनिसिलीन-नोटेटमPenicillin Notatum रखा।

Discovery of Penicillin

फफूंँदे अक्सर आकार में बढती आती हैं और हवा द्वारा इधर-उधर उड़ा दी जाती हैं। यह मौके की बात थी कि फ्लेमिंग द्वारा तैयार की गई कल्चर (जीवाणुओं की खेती) पर एक फफूंद गिर पड़ी और उसे आंशिक रूप से नष्ट कर दिया । किन्तु यह जानकारी नहीं हुआ था कि इन फफूंदों में से कोई एक भी जीवाणु को नष्ट कर सकती थी । वह पलेमिंग की सतर्कता, उत्सुकता तथा सूक्ष्मावलोकन शक्ति थी जिन्होंने उसे उस महान आविष्कार का पथ प्रदर्शन किया। यह वैज्ञानिकों तथा शोधकर्ताओं के लिए अनिवार्य गुण है। पलेमिंग का यह आविष्कार उसकी वैज्ञानिक जिज्ञासा तथा खोजकर्ता के रुप में उसके अनुशासन का परिणाम था।

प्रयोग की फफूंद वाली कहानी 

फफूँदो पर अपने प्रयोगों में फ्लेमिंग ने कई सप्ताह तथा महीने व्यतीत कर दिये। भोजन,कपड़ा तथा चमड़ा जिन पर फफूँदी लगी हुई थी सभी को अपने सूक्ष्मदर्शक यंत्र से वह जाँच करता था ।वह मेरी नामक एक महिला को फफूंद लगी हुई किसी भी पुरानी वस्तु को खरीदने के लिये अक्सर बाजार भेजा करता था। यह महिला बाजार में इतनी अधिक बार दिखाई पड़ती थी कि लोग उस मोल्डी (फफूंद वाली) मेरी कहते थे।


फ्लेमिंग ने पता लगाया कि पेनिसिलीन फफूंद 800 गुना तनु करने पर भी कीटाणुओं को मारने में असरदार थी। किन्तु उसकी एक कठिनाई थी जिसे वह पार न कर सका। उसने यह पाया कि पेनिसिलीन फफूंद स्वयं ही कीटाणुओं को नहीं मारती थी। यथार्थ में फफूंद द्वारा उत्पन्न एक
औषधि थी जो उन्हें मारती थी। अब इस औषधि (दवा) को फफूंद से अलग निकाला जाना था।


सन 1029 में पलेमिंग ने अपने निष्कर्षों को इस आशा में प्रकाशित किया कि कोई अन्य व्यक्ति उसके पथ प्रदर्शन (दिखाये गये रास्ते) का अनुसरण करेगा और अन्त में उस दवा को फफूंद से निकाल लेगा।

पेनिसिलिन के खोजकर्ता 


दो खोजकर्ताओं डॉ. हावर्ड फ्लोरे और डॉ. ई. वी. चेन ने फ्लेमिंग के कार्य को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में जारी रखा। उन्होंने देखा कि पेनिसिलीन फफूंद (मोल्ड) शक्कर के घोल में सबसे ज्यादा अच्छी तरह से विकसित होती थी। घोल में फफूंद पर उन्होंने बहुत से प्रयोग किये। एक दिन अकस्मात घोल के सही मिश्रण और उनकी फफूंद के लिये उचित तापमान की जानकारी उन्हें प्राप्त हो गई। उसमें उन्होंने कुछ छोटी सुनहरी बूंद देखीं। सचमुच में ये औषधि की छोटी-छोटी बुंदें थी। ।

इन बुंदों को उन्होंने एकत्र किया जो कि सुखाये जाने पर सफेद चूर्ण में परिवर्तित हो गया।
अगली बात उस औषधि की जाँच करनी थी। बहुत से चूहों को किसी शक्तिशाली बीमारी के कीटाणुओं का इन्जेक्शन लगाया गया। इनमें से कुछ को पेनिसिलीन इन्जेक्शन तीन-तीन घण्टों में दिया गया और शेष (चूतों) को बिना इलाज किये छोड़ दिया गया। दूसरे दिन सबेरे सभी बिना इलाज के छोड़े गये चूहे गरे पाये गये किन्तु जिन्हें पेनिसिलीन Penicillin का इन्जेक्शन दिया गया था वे पूर्णतया निरोग (स्वस्थ) पाये गये।

पेनिसिलिन की दवा का प्रयोग 


खोज करने वालों का अगला कदम उस दवा को मनुष्य पर आजमाना था। उनका एक मित्र अनेक वर्ष से किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित था। बहुत-सी दवाओं को आजमाया गया किन्तु कोई फल न निकला । ऐसा निश्चित प्रतीत होता था कि वह आदमी कभी रोगमुक्त नहीं होगा किन्तु धीमी मौत मरेगा। फ्लेमिंग और उसके वैज्ञानिक साथियों को इस नई दवा के असरदार होने पर इतना विश्वास हो गया था कि वे इस दवा का प्रयोग इस मरीज पर करना चाहते थे। उसे मात्र एक या दो पेनिसिलीन इन्जेक्शन दिया गया और वह धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा। यह सचमुच सर्वाधिक उत्साहवर्धक था। कुछ और इन्जेक्शनों से वह आदमी पूर्णतः स्वस्थ हो गया।


धीरे-धीरे अधिकाधिक पेनिसिलीन दवा तैयार की गई और उसे लोगों की जान बचाने हेतु उपयोग में लाया गया। द्वितीय विश्व युद्ध में घायल 95 प्रतिशत सैनिक, जिनका इलाज उस दवा से किया गया, स्वस्थ हो गये।


सन् 1940 में पेनिसिलीन Penicillin की शक्ति की खबर सारे संसार में फूट पड़ी (अचानक फैल गई)। रात भर में फ्लेमिंग प्रसिद्ध हो गया और उसे अपने युग के सर्वाधिक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में से एक माना जाने लगा।

नोबेल पुरस्कार


सन् 1944 में वह सम्राट जार्ज VI द्वारा ‘सर’ की उपाधि (नाइटहुड) से सम्मानित किया गया और वह ‘सर एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग’ बन गया। अगले वर्ष उसे और उसके जीवाणु शास्त्री साथियों को, जिनके संयुक्त प्रयास से यह महान् आविष्कार हुआ था, सामूहिक रूप से नोबेल पुरस्कार से
सम्मानित किया गया। इस महान् सम्मान को प्राप्त करने पर फ्लेमिंग ने अपने सहज विनीत ढंग से कहा-“जहाँ कहीं मैं जाता हूँ लोग मुझे उनका जीवन बचाने के लिये धन्यवाद देते हैं। मैंने कुछ नहीं किया। मैंने उस दवा की खोज की जो पहले से ही थी।”
पेनिसिलीनPenicillin की खोज ने महान योगदानों में से एक है, जो वैज्ञानिकों ने रोगों पर विजय पाने के लिये की है। पेनिसिलीन के उपयोग से विश्वभर में लाखों लोगों का जीवन बचाया गया है। आज वह सबसे अधिक व्यापक रूप से प्रयोग में लाई जाने वाली दवाओं में से एक है।
हम जानते हैं कि पेनिसिलीन Penicillin सभी छूत की बीमारियों की दवा नहीं है। अब भी ऐसे अनेक रोग हैं जिन पर उसका कोई असर नहीं होता है। परन्तु उसके आविष्कार ने अन्य सभी प्रकार की फफूंदों और पौधों पर खोज करने का रास्ता खोल दिया है। इस कार्य के फलस्वरूप अनेक नई दवाओं का आविष्कार हो चुका है और आजकल चिकित्सक, जितना कभी पुराने समय में रोगमुक्त करना सम्भव था, (उसकी अपेक्षा) बहुत-सी बीमारियों का इलाज करने और रोगमुक्त करने में समर्थ हैं।

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